मेरा होना अब कैद है
अनियमित धड़कनों
आंखों के काले घेरों
लड़खड़ाती अस्पष्ट आवाज़ों
टूटते हुए ख्वाबों की पीड़ाओं
और
बामशक्कत पलकों की कोरों में
रुककर सूखे हुए आंसुओं
रिसते हुए रिश्तों
घटते हुए आत्मविश्वास में
मेरे होने के दीये में
इस उम्मीद की लौ के साथ,...!
जैसी भी हूँ, जब तक भी हूँ
जिंदा नहीं हूँ बल्कि जी रही हूँ
पल-पल जी भर
और मानती हूँ
यही है दुनिया में सहीं मायने में मेरा होना
और मुझमें जिंदगी का होना
कब तक ये वो जाने,..है न!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
वो ही जानता है । सुन्दर सृजन
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