Saturday 15 August 2020

"बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय"


जो बोयेगा, वही पाएगा
जैसी करनी, वैसी भरनी
नीम बोने वालो को आम कैसे मिलेगा?
जैसे अनेक मुहावरे, उनपर बने गीत, प्रवचन, व्याख्यान, किताबें जब से जन्म लिया तब से सुनते आए हैं।
बहुत छोटे थे जब गोद में ही रहते थे तब हमें कहा जाता था जल्दी सो जा नहीं बाऊ आ जाएगा। यहां से शुरू होती है सीख की कि *हर क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है* और विज्ञान में न्यूटन का तीसरा नियम भी जेहन में फिट हो जाता है। फिर जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं। बात-बात में हमें गीता के उपदेश मिलने लगते हैं। "कर्म करो पर फल की चिंता मत करो" पर हमें फल की चिंता न हो तो बबूल और आम की फिक्र क्यों?
यहाँ पर मेरा मस्तिष्क आदेश देता है कि अच्छे कर्म करो तभी फल भी अच्छे मिलेंगे। कर्म सिद्धान्त कहता है कि हर कर्म को करते समय हैम जितनी जयणा करेंगे, जितने भाव और क्रिया को उत्तम प्रकृति का रखेंगे हमें उस का परिणाम सुखद मिलेगा। किसी के प्रति किया गया सद्व्यवहार या परोपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता। ठीक वैसे ही किसी के प्रति मन में पल गया द्वेष, छल, कपट और झूठ का परिणाम भी भुगतना ही पड़ता है।
एक और महत्वपूर्ण बात कर्म सिद्धान्त कहता है कि अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम भोगे बिना मुक्ति संभव नहीं है। ये बात उन लोगों को खास तौर पर समझनी चाहिए जो ये सोचते हैं कि बुराई पर अच्छाई का आवरण डाला जा सकता है।
हर जीव की उत्पत्ति और उसका बढ़ना और खत्म होना अलग अलग आयु में होता है वैसी ही प्रकृति कर्मों की भी होती है। जैसे गुलाब और नीम एक ही दिन बोया हो तो भी गुलाब के फूल और नीम के फल अलग अलग समय में मिलेंगे। और गुलाब की खुशबू अल्पायु की होगी और कांटे जब तक वृक्ष है तब तक रहेगा और नीम बहु देर से फलेगा, देर तक रहेगा। 
ऐसे अनेकानेक उदाहरण प्रकृति स्वयं हमें कर्म सिद्धान्त के प्रतिपादन के देती है। हम अच्छे के साथ अच्छा और बुरे के साथ बुरा होना सही मां लेते हैं। लेकिन धरती और प्रकृति हमें ये भी समझाती है कि अपना अच्छा स्वभाव कभी मत छोड़ो। बस परेशानी ये है कि हम समझकर भी समझना नहीं चाहते हैं।
हम चाहते हैं हमारा बुढापा सुख में कटे लेकिन हम स्वयं अपने अभिभावकों के प्रति बुरे व्यवहार का उदाहरण अपने बच्चों को देकर जिन संस्कारों का बीजारोपण करते हैं वो हमारी वृद्धवस्था में फलित होगा।
हम आज जो भी करते हैं वो हमारे अतीत से प्रेरित होता है और भविष्य को अवश्यमेव प्रभावित करता है। इसलिए ये उदाहरण यदा कदा याद कर लेना चाहिए कि बबूल बोकर आम का फल कभी नहीं मिल सकता।
अब सवाल ये है कि यदि हमारे बीज में बबूल रहा हो तो? अपने भविष्य की परिणति बबूल के कांटे और फल में ही होगी तो क्यों न बबूल के सद्गुणों को अपनाया जाए, औषधि बनकर, ईंधन बनकर, प्राणवायु संचारित करके। इसका परिणाम ये होगा कि हम अपनी संतानों में आम वाले संस्कारों को अपने औषधीय गुण से पोषित कर सकेंगे, हमारे कांटे उनकी सुरक्षा का कवच बनेगा। अपनी गलतियों को सुधारने का सबसे बेहतरीन तरीका है जो हमारे हाथ में है उसे अच्छा बना लें। आज आम बो लें तो शायद कल मीठे फल भी खाने को मिलेंगे और आज सुधार कर लें खुद में तो दूसरों के लिए मिसाल और औषधि बन जाएंगे।

बबूल बोकर आम के फल का मिलना संभव नहीं है,
बबूल हैं तो औषधि बन जाएं क्या ये संभव नहीं है,
जो संभव है उसे अच्छे से बेहतर बनाने की कोशिश करें,
माने न माने जीवन जीने का यही तरीका सही है।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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