माना रहते हैं साथ सभी के,
पर खुद में तन्हा-तन्हा हम।
यूँ तो दिखते हैं खुश हर पल,
किसने देखा ये आँखें हैं नम।
सबको सबके जैसे लगना तो,
सबकी खुशियों की खातिर है।
अधिकार कभी मांगा न पाया,
कर्तव्य ही लक्ष्य रहा हरदम।
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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