हाँ!
मैं अँधेरों से रखती हूँ वास्ता
क्योंकि
अँधेरों से ही होकर गुजरता है रास्ता
उजालों का, सुबह का, जिंदगी का,
अब
मेरे आसपास उजाले देखकर
सोचो नहीं समझो,
खूबसूरत सुबह देखने के लिए
मैंने कितनी अंधेरी रातें गुज़ारी हैं!
सच!
तुम डर की वजह नहीं
बल्कि वो सच्ची दोस्त हो
जो सिखाती हो इंतज़ार करना
उम्मीद की सुनहरी किरण का
रात! मेरी जान, मेरी हमदम, मेरी दोस्त,...।
डॉ प्रीति समकित सुराना
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