मोड़ पर भुवन भाई का घर था। लखन अक्सर नोट्स लेने उनके घर जाता था पर कभी उन्होंने भीतर आने को नहीं कहा।
हर बार लखन को उनके घर के भीतर के कमरे से झांकती एक बच्ची दिखाई देती। बार-बार जब ऐसा हुआ तो एक दिन लखन ने पूछ ही लिया, भुवन भाई अब तो हम अच्छे दोस्त हो गए हैं। कभी तो भीतर बुलाओ, कौन कौन रहता है आपके घर में?
भुवन ने कहा आओ भाई बैठो अंदर चलकर, सब बताता हूँ।
भुवन ने जाकर बच्ची को भीतर छोड़कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। पर बच्ची मचलती हुई खिड़की पर आ ही गई।
फिर भुवन ने बताया वो बच्ची उसकी दीदी की बच्ची है। जिस घर मे अभी तुम रहते हो उसी घर में 5 साल पहले एक अखिल नाम के व्यक्ति पढ़ाई के लिए रहते थे, वो भी किसी गांव से ही थे। अखिल और दीदी एक-दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों के संबंध शादी से पहले ही अंतरंग हो गए। अखिल हम सब को पसंद था, पर उसके गांव और परिवार के बारे में ज्यादा पता नहीं था। बस ये जानकारी थी कि माँ नहीं रही, चोट भाई और अपाहिज पिता थे जिन्हें अपनी ट्यूशन की फीस और कुछ और काम करके पालता था। फाइनल के बाद अखिल शादी करना चाहता था। इसलिये गाँव गया तभी पता चला दीदी गर्भवती है और पांचवा महीना चल रहा है। पर दीदी को विश्वास था कि अखिल लौटकर आएगा। तनाव के कारण यह बच्ची सातवें महीने में ही पैदा हो गई। और सारे मोहल्ले और रिश्तेदारों में बात फैल गई। पर अखिल नहीं लौटा।
दीदी, माँ और पिताजी सदमे में आ गए और एक दिन एक चिट्ठी मेरे सिरहाने रखकर आत्महत्या कर ली। तब मैं सिर्फ 17 साल का था, आज भी दीदी के कहे अनुसार बच्ची को पाल रहा हूँ, नोट्स बनाकर और कुछ ट्यूशंस लेकर घर चलता हूँ क्योंकि इसे अकेला नहीं छोड़ सकता, इसके बेवफा पिता ने कितनी जिंदगियाँ बर्बाद कर दी। ये कहकर भुवन रोने लगा पर लखन स्तब्ध रह गया।
थोड़ा सम्भलकर बोला, भुवन हमेशा जो दिखता है वही सही नहीं होता। जिस घर में मैं रहता हूँ वो हमारा ही घर है। भैय्या गाँव पहुंचे ही थे कि सामने पिता की मृत देह देखकर उनपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। तेरहवीं के बाद उन्होंने मुझे सब बताया पर बच्ची के बारे में उन्हें पता नहीं था शायद। मेरे ट्रांसफर सर्टिफिकेट आदि के काम के लिए हफ्ते भर समय था, तब तक भाभी को सब बताने के लिए भैय्या जिस बस में चढ़े उसका एक्सीडेंट हो गया, और भैय्या बहुत बुरी तरह घायल हो गए। 8 दिन में बहुत मुश्किल से मुझे इस घर का पता बताया, और गांव का किराए का घर छोड़कर पढ़ लिख कर अच्छा इंसान बनने का वादा लिया। भाभी के बारे में कुछ बताने ही वाले थे कि उनके प्राण निकल गए।
8 दिन बाद बहुत हिम्मत करके मैं शहर आया, कॉलेज शुरू हो गया था, तभी नोट्स के लिए तुम्हारा पता कॉलेज के लड़कों से ही मिला। हमेशा वो बच्ची मुझे अपनी ओर खींचती थी।
भाई हम दोनों ने बहुत कुछ खोया है सिर्फ नियति का खेल था यह।
वो गुलाबी फ्रॉक वाली लड़की मेरी भतीजी है मेरे भाई और अब ये हम दोनों की जिम्मेदारी है, मामा और चाचा साथ रहेंगे और साथ-साथ इसे पालेंगे, हम दोनों भाई बनकर एक साथ रहेंगे, उस घर में कोचिंग सेंटर डाल कर मेरी ट्यूशन और तुम्हारे नोट्स मिलाकर बहुत से बच्चों का भविष्य बनाएंगे।
दोनों दोस्त आज एक छोटी सी गुलाबी फ्रॉक वाली लड़की के कारण भाई बन गए,और वो उन दोनों की जिंदगी। ये जिंदगी नियति के अजब खेलों का मंच है। आज वो तीनों बहुत खुश है। इन्हें मिलाकर विधाता ने अपनी गलती और भविष्य की नियति को सुधार लिया है शायद।
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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