Thursday, 16 April 2020

वो भी दिन थे



जब कांधे पर टांगे बस्ते
मिलते-जुलते, गाते-हँसते,
आँखों में छुपाकर अनगिन सपने
लड़ते-झगड़ते और बतियाते
मित्रों संग पढ़ने-लिखने जाते थे,..!

खेल अनोखे, शर्त अनोखी
अपने ही मित्रों की देखादेखी
चॉकलेट-बिस्किट की फरमाइश
नए कपड़े, घड़ी और साइकिल
ये सारी मांगे घर मे ही मनवाते थे,..!

कुछ बड़े हुए तो नए शौक
सिनेमा, सर्कस और क्रिकेट
घंटो बैठे गपशप में
स्कूल-घर सब भूल जाते
बात-बात पर बड़ों की डाँट खाते थे,..!

न कोई झंझट, न जिम्मेदारी,
मस्ती, मौज और खेल, पढ़ाई,
सब करते थे बारी-बारी
वो भी दिन थे, ये भी दिन हैं
पर खुशियाँ वो गई कहाँ बेचारी,..!

उम्र बड़ी और अनुभव भी,
मित्र नए, मिले दुश्मन भी,
बेखौफ नहीं है अब जीवन,
फिर उन दिनों की आस में,
बस यूँही जिये जा रहे हैं, पहले जीवन जीते थे,...!

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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