Thursday 9 April 2020

#जकड़लेतीहैकोईबात



सुनो!
आज तुम पूछते रहे 
मेरे गुमसुम रहने की वजह!
हुआ ये था
कि एकाकीपन में 
दीवारों की ओर ताकते हुए
देख लिया मैंने प्रकृति का एक अजब खेल
एक मकड़ी
बुनती रही जाल
और बड़ी आसानी से एक-एक तार पर 
घूमती-खेलती रही
अचानक 
उसका पैर धोखे से हट गया अपने पथ से
और उस एक गलती ने उलझा दिया
उसे अपने ही बुने जाल में!
मैं अकसर कहती रही तुम्हें
सोचकर बोला करो
कभी-कभी
जकड़ लेती है कोई बात
मकड़ी का दर्द उस उलझन में देखा है मैंने
जो जानलेवा भी हो सकता था 
अगर दूर होता दीवार का वो कोना
जिसपर बुना था उसने जाल!
समझ सको तो समझना
हर बार नहीं मिलते किनारे
किसी भी जकड़न या अकड़न से बचने के लिए!
इसलिए गुजारिश है मेरी
सोच कर बोलो
चाहे खुद के लिए चाहे दूसरों के लिये,..!

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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