Friday 3 April 2020

मिटता बनता रहता है

#सपनों का शहर है
वक्त का डर है
किस्मत का कहर है
कब किसी को कुछ मिला
वक्त से पहले या किस्मत के बगैर है?
पर इसका अर्थ ये कतई नहीं है
कि वक्त और किस्मत के 
इंतज़ार में बैठे रहें बेरंग
हो सकता है किस्मत में लिखा हो
जो चाहते हो वो मिलना तय है समय पर
लेकिन तुम्हारे कर्मफलों के संग
तो फिर जब सब कुछ अज्ञात है
तो डर या दर्द कैसा 
क्यों रखें अपनी स्वप्ननगरी सूनी
वहाँ तो हम सबका वो घर है
जो मिटता बनता रहता है
स्वप्न देखेंगे तभी तो पूरे होंगे
कुछ सपनें टूटेंगे तभी तो नए देखेंगे।
सुनो!
आओ देखे कुछ नए सपनें,..."हम-तुम"!

#डॉ प्रीति समकित सुराना

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