Thursday 2 April 2020

चश्मा

उम्र का तकाज़ा भी था
और 
लोग भी जलने लगे थे
कि अनुभव तो बहुत लिए
पर बाल 
न धूप में सफेद हुए 
न अनुभव से,..!

आखिर
हमनें भी आँखों पर चश्मा चढ़ा लिया
ताकि पढ़ सकें जिंदगी के
तमाम सबक,..सही-सही,..!

और इत्तेफाक भी देखिए
चश्मा भी दूर का देखने के लिए लगा
ताकि हम दूर दृष्टा बन सकें
और करें कुछ ऐसा जो आज कठिन भी लगे
तो दूरगामी परिणाम अच्छे हों,..!

क्योंकि समाजिक दूरियाँ तो हमनें
तभी बना ली थी
जब अक्ल दाढ़ के साथ अक्ल आई
कि पास आकर तो लोग 
आस्तीन में जगह बनाने लगते हैं,..!
बताइए सहीं किया न???

डॉ प्रीति समकित सुराना

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