Thursday 2 April 2020

रात ये कह कर छेड़ती है

#मेरे छत की गौरैया झगड़ती है
कभी बहती हवाएँ जकड़ती है

खुद में खोए हुए बैठो कभी तो 
तपती धूप भी आकर पकड़ती है

अकेले बैठे तुम्हे याद कर लूँ तो
बेमौसम ही बदलियाँ घुमड़ती है

यादों में जिक्र किसी खास पल का हो
तो ये बहारें इठलाती है, अकड़ती है

शीत लहरों में तुम्हारी बाहों की गर्मी
याद करके खुद ही बाहें सिकुड़ती है

अभी वक्त है तो रोज ही मिलते हो
हवाएँ मुझसे इस बात पर लड़ती है

खुलेंगे सभी बंद रास्ते तो तुम आओगे
रात अब ये कह-कह कर मुझे छेड़ती है

#डॉप्रति समकित सुराना

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