Sunday, 22 March 2020

आँखें कितना कुछ झेलती हैं!



सपनें
सपनों का मुकम्मल होना
या टूट जाना
ऑंसू
आँसुओं का बह जाना
या सूख जाना
अपने
अपनों का साथ रहना
या दूर जाना
दुनिया
दुनिया में मानवता का होना
या अमानवीय हो जाना
कितनी सहनशील हैं ये
आँखें कितना कुछ झेलती हैं!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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