(चित्र:- जयति सुराना)
घर के सामने जो बरसों पुराना आम का पेड़ है न!
रहते हैं उसमें उल्लू, तोते, कबूतर, कौए, कुछ गौरैया भी,
उछलती-कूदती है गिलहरियां भी,..
पिछले कुछ दिनों से
इन पंछियो ने सुबह राग छेड़ना ज्यादा कर दिया है
सरगम से चहचहाहट वातावरण को ही नहीं
सुबह को भी संगीतमय कर दिया है
एक उड़ती हुई चहकती हुई
गौरैया को देखकर जयति के मन मे उभरा एक चित्र
और उस चित्र को देखकर
मुझे भारत की आकृति नज़र आई
मेरे सपनों का चहकता भारत
जिसे एक दिन फिर कहना चाहती हूँ
सोने चिरैय्या
जो गाती है, नाचती है, ठुमकती है
मेरे सपनों के भारत की तरह।
यकीनन
एक दिन फिर होगा भारत
"सोने की चिड़िया"
अगर भारतीयों से साम्प्रदायिकता हटकर एकता में बदल जाए।
सोचो,....जरूर सोचो,... सिर्फ एक बार
डॉ प्रीति समकित सुराना
सुन्दर प्रस्तुति
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