कब मिले
कब नज़र टकराई
कब नज़र ने नज़र से हाँ कहा
कब दिल ने नज़र की बात सुनी
कब दिल ने दिल को किया स्वीकार
कब हुआ हमें प्यार
कब बढ़ी अपेक्षाएं
कब शुरू हुए झगड़े
कब हुई आँखों से बरसातें
कब हुए जुदा
कब कितना रोए, तड़पे, छटपटाए
आखिर जा जी न सके
तो सारी ज़िद, अपेक्षा, गुस्सा, झगड़ा भूलकर
आज हम फिर मिले
माना कोई शिकवा अब नहीं
पर कहो न!
तुम्हें सच में याद नहीं?
या
तुम भूल जाना चाहते हो सब
मेरी खातिर
क्योंकि तुम्हें प्यार नहीं
सिर्फ मेरी खुशी चाहिये
क्योंकि ये ही तुम्हारा प्यार है।
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment