एक सच्ची घटना
इस वर्ष पुस्तक मेले में जाने की स्थिति में नहीं थी, पर गई क्योंकि वो नन्ही कलमें, नवांकुरों के सपने, घर की चारदीवारी में रहकर कुछ तो लिखने वाली महिलाएँ मेरे अभियान का हिस्सा है। उनकी साल भर में प्रकाशित पुस्तकों को पुस्तक मेले के माध्यम से राष्ट्रीय पुस्तकालय तक पहुँचना केवल रचनाकारों को नहीं मुझे और मेरे काम को भी तसल्ली देता है।
वहाँ एक महिला मित्र ने गले मिलकर मुझे ढेर सारी शुभकामनाएँ दी, खूब सारी दुआएँ, बधाई और मिठाई के बाद सामने कुछ सवाल रखे।
जो जवाब मैंने उन्हें दिये, उसमें मेरी खुद की पीड़ा भी शामिल है जो आप सब से साझा कर रही हूँ।
प्रश्न. 1 आप इतनी अस्वस्थता के बावजूद कैसे ये सब करती हैं?
मेरा जवाब- मैं इतनी अस्वस्थता के बाद भी साहित्य के लिए पूरी तरह समर्पित हूँ, 2011 तक मेरे 5 ऑपरेशन हो चुके थे डिप्रेशन की शिकार होने लगी थी क्योंकि 3 बच्चे, परिवार, व्यापार और स्वास्थ्य की समस्याएं एक साथ हैंडल करना आसान नहीं था। तब सिर्फ समकित की प्रेरणा से मैंने इंटरनेट का प्रयोग शुरू किया, छोटे से गांव में तब इंटरनेट चलाना वो भी रात-रात को बड़ी बात होती थी और उस पर लोगों की बड़ी बातें भी होती थी। पर समकित का कहना था बिस्तर पर पड़े रहने से अच्छा खुद की रुचि के काम में व्यस्त कर लो। तब मैंने ब्लॉग "मेरा मन" शुरू किया। 2012 में हाईपोग्लुसोमिया के अटैक के बाद 6 महीने निराश और अशक्त रही तभी फेसबुक पर सक्रिय हुई परिणाम स्वरूप 2013 में 2 पुस्तकें 'मेरा मन' और 'मन की बात' जिसमें मेरी लगभग रचनाएँ 1990 से 1994 के बीच लिखी हुई थी वो प्रकाशित हुई। 5-6 साझा संकलनों का हिस्सा बनी और खुद भी "सपनों के डेरे" प्रकाशित की। और तब शुरू हुआ लेखन का सही सफर। और साहित्यिक सम्मान और यात्राएं।
फरवरी 2016 में 13 महिलाओं की सृजन फुलवारी से आज व्हाट्सअप समूह, फेसबुक समूह, फेसबुक पेज, वेबसाइट, वेब पत्रिका, सृजन शब्द से शक्ति का दैनिक वेब पेज और लोकजंग भोपाल में लगातार 3 वर्षों से अन्तरा शब्दशक्ति के रचनाकारों की रचनाओं का निःशुल्क प्रकाशन। रजिस्टर्ड संस्था के माध्यम से साहित्य और समाज सेवा के साथ विगत 21 माह में 305 ISBN वाली और 46 प्रायोगिक तौर पर प्रकाशन शुरु करने के पहले सृजन समीक्षा यानी 351 पुस्तकें प्रकाशित और संपादित की हैं।
और ये सब सिर्फ इसलिये करती हूँ कि समकित और बच्चों का भरपूर साथ और विश्वास है। मैंने सपनों को सच करने के लिए जो बाधाएं सही है वो अन्तरा परिवार को न सहनी पड़े खासकर महिलाओं के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहती हूँ कि हम साथ होकर बहुत कुछ कर सकते हैं। झुठलाना चाहती हूँ इस वाक्य को कि "स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी दुश्मन है।" संघर्ष है तब तक चलेगा जब तक हिम्मत न टूटे।
2. समकित जी का सपोर्ट मिलता है पर क्या परिवार के बाकी सब भी साथ देते हैं?
मेरा जवाब:- समकित जी और बच्चों का सपोर्ट मिलता है बाकी सभी से ताने, सवाल और कटाक्ष मिलते हैं कि घर कौन संभालेगा? इतनी बीमार है तो ये सब करने की क्या जरूरत है? घर और व्यापार पर असर पड़ता है क्या जरूरत है इन सब की? बच्चों की परवरिश ठीक से कर ले वही बड़ा काम है? अच्छे घरों की बहुएँ ये सब करें सही है क्या आदि इत्यादि।
मैं आहत होती हूँ, बहुत ज्यादा आहत होती हूँ, रोती हूँ, बिलखती हूँ, टूटती हूँ, बिखरती भी हूँ पर समेटने का हौसला मिलता है अपनों से। मेरे स्वास्थ्य की चिंता मुझसे ज्यादा डॉ Bharti चाची को है, समकित को है, बच्चों को है, जो सच में मुझे इस मुकाम पर देखकर खुश हैं उन दोस्तों को है, मेरे मम्मी-पापा को है। पर दुख तब होता है जब अपने ही परिवार के लोग मम्मी-पापा के सामने जाकर मेरे स्वास्थ्य की चिंता जताकर उनकी चिंता बढ़ा आते हैं।
रहा सवाल मेरे बच्चों का तो उनकी परवरिश उन परिस्थितियों में की है जब आर्थिक, मानसिक और शारीरिक हर तरह की समस्या से जूझ रही थी। एक दोस्त बनकर पाला है बच्चों को तो वो खुलापन भी कई लोगों को खलता है। पर मुझे गर्व है कि बच्चों की हमराज भी मैं हूँ और माँ की तरह स्ट्रिक्ट भी हूँ। घर की सफाई और कुकिंग से लेकर राशन-पानी, बैंक और व्यापार तक में उतना तो सिखाया है कि जरूरत पड़ने पर खुद को संभाल लें। सबसे बड़ी खूबी मेरे बच्चों की ये है कि आज जब नई पीढ़ी प्रैक्टिकल हो रही है तब भी ये तीनों बच्चे भावुक हैं संवेदनशील है और न कहना इन्हें नहीं आता। समकित और मैं दोनों ही बच्चों को लेकर आस्वस्त हैं आगे उनका भविष्य मेरी परवरिश से ज्यादा उनके कर्मों से तय होगा।
और एक महत्वपूर्ण बात 22 साल मेरी शादी को हुए है, मेरे घर किसी के आतिथ्य में कोई कमी नहीं होती, हर सुविधा जुटाई है और ये सारी व्यवस्थाएँ समकित, तन्मय, जयति, जैनम और स्टाफ के सहयोग से सुचारू रूप से एकल परिवार में भी 12 साल से कर रही हूँ जिसमें किसी अन्य का सहयोग नहीं है तो हस्तक्षेप कैसा? ये तो घर मे रहने वाले बताएंगे न कि कैसे होता है, बाहर से ये चिंता क्यों? मेरे लिए कुछ करने वाले ही दखल दें और वो मेरे बच्चे, समकित है और मित्र हैं।
3. एक महिला के जुझारूपन को लोग हमेशा तिरस्कृत करने के बहाने ढूंढते हैं क्या आपके साथ भी ऐसा होता है?
मेरा जवाब- बिल्कुल ढूंढते हैं बल्कि कोई मौका छोड़ते ही नहीं। पर अब आदत हो गई है क्योंकि मैं शुरू से कहती हूँ "जो कुछ नहीं करता उसके साथ एक ही वाक्य जुड़ता है कि वो कुछ नहीं करता। जो कुछ करता है उसके साथ हज़ार सवाल होते है- कब, कहाँ, क्यों, कैसे, कितना, किसको, किसलिये, किसके लिए, कब तक,... जैसे सारे प्रश्नवाचक शब्द केवल उनके लिए होते हैं जो कुछ करता है या करना चाहता है।
मेरे जीवन का सार यही है "जीना चाहती हूँ और जीने के लिए कुछ करना जरूरी है।" मैं जो भी करती हूँ मेरे परिवार के यानि समकित और बच्चों के सहयोग मेरे हर निर्णय में होता है।
गलतियों को सुधारने से लेकर मेरे नए सपनों का आकाश गढ़ने तक हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन और सहयोग करने वाला
परिवार
मम्मी-पापा, डॉ चाचा-चाची, पूजा- अर्चना, सीमा भाभी-नितिन भैय्या, अदिति भाभी-संजय भैय्या, उषा-नीलेश भैय्या, प्रीति दीदी, रीता दीदी, ऋतु भाभी-पप्पू भैय्या, कीर्ति-प्रदीप जीजाजी, रानी-प्रदीप जी, रिषि-रिनी, राजेश पटले, संदीप सोनी (मानु), मोंटू, पिंटू, चिंटू, सुन्नु।
मेरी सखियाँ
पिंकी परुथी, प्रीति अज्ञात, अलका और वसुंधरा।
फेसबुक परिवार (जिनकी छुटकी हमेशा छुटकी ही रहेगी)
आ. दिनेश देहाती जी( सिर्फ fb नहीं ,परिवार और साहित्य में भी) मुकेश भैय्या, सपना भाभी, गुलशन(भतीजा), पवन अरोरा, केदार भाई, मुकेश कुमार सिन्हा, तेज, ऋषि अग्रवाल,...
साहित्य परिवार
अन्तरा शब्दशक्ति का प्रत्येक सदस्य और
योगेंद्र शर्मा जी, शशिकान्त यादव जी, शेखर अस्तित्व, लोकेश महाकाली, मुकेश मनमौजी जी, मनोज जैन मधुर, किशोर श्रीवास्तव जी, सुमित मिश्रा, डॉ सपन सिन्हा, प्रियंका राय, रक्षित दवे जी, दीपिका ऋषि झा,...!
कोई महत्वपूर्ण नाम छूट गया हो तो अभी से सॉरी🙏🏼🤗 बता देना plz।
समकित और बच्चे मेरी ताकत हैं इसलिये इन्हें संभालना मेरा पहला दायित्व है किसी को शिकायत होनी चाहिए तो सबसे पहला हक इनका है क्योंकि ये ही है जो मुझे संभालते हैं।
नोट:- सोशल मीडिया आज का सबसे बड़ा मंच और परिवार है अगर इसे विज्ञान के वरदान की तरह उपयोग करें अभिशाप की तरह नहीं।
दूसरी बात रिश्ते वही चलते हैं जहाँ भावनाएँ हों, सिर्फ स्वार्थ के रिश्ते केवल पीड़ा देकर तोड़ने का काम करते हैं इसलिए रिश्तों का चयन सावधानी से करें ये मेरे कटु अनुभवों का सार है।
डॉ प्रीति समकित सुराना
संस्थापक
अन्तरा शब्दशक्ति
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