#निर्मल सा शीतल जल
बहता हुआ कल-कल
सतत प्रवाहित रहकर
तटों के बंधन में बंधकर भी
चश्मदीद गवाह होती है
जुगनुओं की उम्मीदों
तारों के टूटने
चाँद के चमकने
ज्वार-भाटों के उठने की,...!
सुनो!
सुबह और रात के बीच
बंधन में शाम की तरह
जुगनुओं, तारों, चाँद
और ज्वार-भाटे की
हर बात, हर घटना की
चश्मदीद गवाह
हाँ! रात जैसे नदी है,..है न!
#प्रीति सुराना
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