हाँ!
लिखती हूँ
मिटाती हूँ
तुम्ही से कहना है
और तुम्ही से छुपाती हूँ
ये एहसास
क्या और क्यों है
जानती हूँ
पर खुद को
अनजान ही बताती हूँ!
जानते हो क्यों?
क्योंकि
जो किसी ने न कहा
हो कभी
वही
मैं तुमसे सुनना
और
तुमसे जानना चाहती हूँ!
कितना अजीब है
पर
यकीनन
ये भी प्यार ही है,.।
है न!
प्रीति सुराना
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसचमुच बहुत अजीब है। मीठी रचना। बधाई।
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