एक दिन की भोपाल यात्रा और हासिल जिंदगी भर की यादें!
मन का मौसम बहुत उदास सा था,
थोड़ा आक्रोश भी
भीतर ही भीतर पल रहा था
मन ही मन अंतर्द्वंद सा चल रहा था।
स्वास्थ्य ठीक वैसे भी नहीं था। पहले दीवाली सेलिब्रेशन और 31oct को पैरों में लगी चोट और उसके बाद लगातार यात्राओं के कारण बुखार और दर्द भी बढ़ गया था। परिस्थितियों ने निराशा का डेरा बनाने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
*परिस्थितियों से बाहर निकलने के रास्ते कई बार एक कदम या एक पल के निर्णय की दूरी पर होते हैं लेकिन विवेक या भावनात्मक कमजोरियाँ हमें निर्णय नहीं लेने देती।*
लेकिन दूसरा पहलु ये भी है कि *समय अपने समय पर ही आता है।*
7 नव. को कुछ इसी तरह की मनःस्थिति से गुजर रही थी। 8-9 को भोपाल आना ही था लखीमपुर आयोजन में जाने के लिए। लेकिन सखा भाव से श्याम का स्मरण करते हुए और खुद को पीड़ा के दौर से बाहर निकालने का दृढ़निश्चय करके 8-9 के विकल्प में से 8 को चुनकर 7 की रात को मैं और समकित *अनिर्धारित* यात्रा पर निकल पड़े।
दीवाली के दो दिन पूर्व अचानक फिर से तबियत बिगड़ने की खबर मिली थी इसलिए 8 की सुबह सीधे 7:15 को मुकेश भैय्या के यहाँ पहुँचे खुद भैय्या बाईपास रोड तक लेने आए। वैसे भी मुकेश भैय्या और मैं दोनों की बीमारियों से हारकर बैठते कहाँ हैं? 2012 में दोनों की तबियत ज्यादा बिगड़ी थी और अब भी लगता है हमारी परेशानियों का दौर साथ-साथ ही चलता है😎।
ढेर सारी बातें की क्योंकि जनवरी पुस्तक मेले के बाद पापा जी के देहांत से लेकर अब तक सिर्फ फोन पर ही बात होती रही। जाना हो ही नहीं पा रहा था। 11 बजे तक भैय्या-भाभी और बच्चों के साथ समय का पता ही नहीं चला, भैय्या और मैंने पोस्ट में फोटोज़ पोस्ट किए थे कल ही।
वहाँ से 11 बजे मैं, समकित और साक्षी (मुकेश भैय्या की बिटिया) निकल कर 12 बजे हम जहनुमा पैलेस भोपाल पहुँचे अपने परम आदरणीय गुरुतुल्य आशुतोष राणा जी से मिलने। (फोटोज़ और मुलाकात का विवरण अगली पोस्ट में😊)।
3 बजे न चाहते हुए भी वहाँ से निकले। लालघाटी पर मनोज मधुर जी के नवनिर्मित घर में चाय के साथ एक छोटी सी लेकिन यादगार मुलाकात। साक्षी भोपाल से सीहोर के लिए निकल गई थी और हम दोनों पहुँचे लोकजंग के ऑफिस सैफ़ी जी से मिलने।
4:30 से 5:30 लोकजंग ऑफिस में रहे। मिलने मिलाने और बातों का सिलसिला जारी रहा।
वहाँ से 6 बजे निकल कर 9 बजे हम बाबई पहुँचे जहाँ कीर्ति और प्रदीप जीजू इंतज़ार कर रहे थे।
इस सफर में सबसे ज्यादा खास बात और सभी का इंतज़ार इसलिए भी था क्योंकि समकित आयोजनों के अलावा अलग से मिलने साथ आए थे। सब इनका ज्यादा वेट कर रहे थे। प्रदीप जीजू पूरा दिन कॉन्टेक्ट में रहे। रात 12 बजे की बस से बाबई से समकित की वापसी घर के लिए थी और मुझे कीर्ति के साथ लखीमपुर निकलना था।
बाबई पहुंचते ही न्यूज़ सुनने पर पता चला कि राम मंदिर का ऐतिहासिक फैसला 9 नवम्बर 10:30 बजे आ रहा है।
बस फिर क्या था, मन की थकान और तबियत पर सकारात्मक असर आशुतोष जी से बात करके और भैय्या सहित सभी से मिलते-जुलते हो गया था पर शारीरिक व्याधियाँ तुरंत हावी होने लगी। और इसलिए मैंने और कीर्ति ने भी लखीमपुर न जाने का निर्णय लिया। मैं खाना खाकर सो गई । 12:15 तक कीर्ति, जीजू और समकित की गपशप, सलाह-मशविरा, बातचीत चलती रही और मैंने 2 घंटे घर लौटने की निश्चिन्तता के साथ खर्राटेदार नींद ली😀।
12:15 पर कीर्ति और जीजू से आधी नींद में ही विदा ली, घर के बिल्कुल सामने ही बस आती है वहीं से लौट के दोनों बुद्धू घर को आ गए पर नई ऊर्जा, नए विश्वास और नई सुबह के साथ।
सफर की थकान और तबियत को सुधरने में वक्त लग सकता है पर,...
ये एक दिन *8 नवम्बर 2019*
जितना देश के लिए ऐतिहासिक है
उससे ज्यादा हमारे लिए यादगार
सभी अपनों को दिल से आभार।
प्रीति सुराना
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