सुनो
तुम्हे रात के
अंधेंरे क्यूं नही है पसंद????
सोचो जरा,.......!!!!!
जो रात न होती
तो कैसे मिलते
चांद-तारों के नजारे?
कैसे मांगते दुआएं
जो नजर न आते टूटते हुए तारे?
जो रात न होती
तो कंहा जाते
खूबसूरत जुगनु बेचारे?
और कैसे खिलती
ये रात-रानी अंगना हमारे?
जो रात न होती
तो भाग-दौड़ में ही
बीत जाते दिन,
न चैन न आराम न नींद
तो कंहा जाते सपनें सारे?
जो रात न होती
तो उजालों की कद्र
क्या होती?
और सुबह न होती
तो कैसे पूरे होते सपनें हमारे?
और
जो रात न होती
तो हमसफर कैसे बनते??
भूल गए तुम
अंधेरे से डरकर ही तो
मैने थामा था हाथ तुम्हारा ,........प्रीति सुराना
too good
ReplyDeletethanks
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