Saturday, 2 February 2013

जो रात न होती,..


सुनो
तुम्हे रात के 
अंधेंरे क्यूं नही है पसंद????

सोचो जरा,.......!!!!!

जो रात न होती
तो कैसे मिलते 
चांद-तारों के नजारे?
कैसे मांगते दुआएं
जो नजर न आते टूटते हुए तारे?

जो रात न होती
तो कंहा जाते 
खूबसूरत जुगनु बेचारे?
और कैसे खिलती 
ये रात-रानी अंगना हमारे?

जो रात न होती
तो भाग-दौड़ में ही
बीत जाते दिन,
न चैन न आराम न नींद 
तो कंहा जाते सपनें सारे?

जो रात न होती
तो उजालों की कद्र
क्या होती?
और सुबह न होती
तो कैसे पूरे होते सपनें हमारे?

और 

जो रात न होती
तो हमसफर कैसे बनते??
भूल गए तुम
अंधेरे से डरकर ही तो
मैने थामा था हाथ तुम्हारा  ,........प्रीति सुराना

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