Tuesday, 5 November 2019

यात्रा श्रीनाथद्वारा की

यात्रा श्रीनाथद्वारा की

हर साहित्यिक यात्रा मेरे लिए सिर्फ सम्मान और आयोजन या अन्तरा शब्दशक्ति को वारासिवनी से बाहर निकाल कर देश के हर कोने तक पहुँचाने का जरिया नहीं होती बल्कि उसके साथ जीवन मे यादों की कड़ियाँ जुड़ती चली जाती हैं क्योंकि आभासी दुनिया ने सिर्फ दर्द नहीं दिए दर्द निवारक रिश्ते भी दिए हैं।
घर से 1 नवम्बर की रात को 8 बजे जयति के साथ वारासिवनी से सफर शुरू किया। सुबह 10 बजे इंदौर अपनी बहन रानी के घर पहुंची। वहाँ जयति ने पूछा विधि भी उदयपुर जा सकती है क्या? घर पर फोन किया, भाभी माँ के साथ जा रही हूँ तो मना करने की बात ही नहीं थी। पूरा दिन बच्चों ने मिलकर धमाल किया और मैंने घर पर रुककर आराम। शाम को ट्रेन से रवाना हुए।
सुबह 7 बजे पहुँचे उसी ट्रेन में वंदना जी भी थी।
7 से 9 होटल वात्सल्य में रुककर हम चारो तैयार हुए, चाय-नाश्ता और एक टैक्सी बुक की और निकल पड़े श्रीनाथ जी के दर्शन हेतु नाथद्वारा।
नाथद्वारा जाने के पहले कल्पना से बात हो गई थी उसने कहा था दीदी आप अकेले नहीं जा पाओगे सीधे घर आना मैं साथ छापकर दर्शन करवाउंगी। अंधों को क्या चाहिए दो आंखें😊।
लगभग 9:45 को हम नाथद्वारा पहुँचे। लोकेश और नव्य इंतजार करते हुए मिले। उनके साथ घर पहुँचे। कल्पना ने गले लगकर एक छोटी बहन का जो स्नेह दिया वो मेरे लिए अविस्मरणीय है। fb के पुराने मित्रों को तो याद होगा ही कि लोकेश और मेरी दोस्ती 2011 fb के एकदम शुरुआती दौर से हुई। मैंने मात्राएं गिनना तक लोकेश से ही सीखा है। मित्रता कायम रही। 2015 महावीर जयंती के आयोजन में जा लोकेश जबलपुर आए तब कटनी में गुंजन दी के घर मिलना प्लान हुआ तब मैं और तन्मय कटनी गए थे। और बहुत यादगार सफर और मुलाकात थी। बस तभी वादे का सिलसिला शुरू हुआ कि मुझे कल्पना भव्य-नव्य से मिलने नाथद्वारा आना है और लोकेश को समकित और जैनम जयति से मिलने वारासिवनी। 
जून के आयोजन में लोकेश-कल्पना का सपरिवार आना तय था पर यूँकि माताजी की अस्वस्थता पश्चात देहांत के कारण कार्यक्रम स्थगित हो गया।
श्रीनाथ जी के राजभोग के दर्शन के लिए गए। कल्पना और नव्य साथ चले। नव्य ने एक पल भी मेरा हाथ नहीं छोड़ा क्योंकि उसको पता था मासी ज्यादा चल नहीं पाती और ऊपर से पैरों में चोट भी लगी थी। पूरे दर्शन नव्य ने ही करवाए क्योंकि भीड़ बहुत ज्यादा थी जिसमें मैं अकेली होती तो संभव ही नहीं था। फिर कल्पना, वंदना जी, और मैंने श्रीनाथ जी के बाहर की दुकानों से खूब सारी शॉपिंग की। स्वादिष्ट प्रसाद और गोलगप्पे खाए। 
बच्चों ने भी इस ऐतिहासिक नगरी की गलियों और बनावट और कल्पना मासी के लाड़ प्यार को खूब एन्जॉय किया। लोकेश तो लोकेश ही है ज्ञान और छंदों का चलताफिरता विकिपीडिया है वो, उसने बच्चों का भी मन जीत लिया। भव्य की पढ़ाई के बावजूद वो काफी समय साथ रहा, नव्य हर पल साथ रहा। 
कल्पना और लोकेश ने लक्ष्मी माता का कमलासन, श्रीनाथ जी की फ़ोटो, माताजी द्वारा स्वरचित रामायण सार, जयति को लिफाफा भेंट किया। जो महसूस किया वो शब्दों में व्यक्त करना असंभव है।
कल्पना के प्यार ने इतना बांध लिया था कि वाकई वहाँ से वापसी बहुत मुश्किल थी। मिलने मिलाने के वादे के साथ नम आंखों से विदा हुए।
सुबह का भोजन मेरी छोटी बहन के घर उदयपुर में था, इसकी शादी के बाद पहली बार उसके घर गए वो भी लेट। शानदार लंच, बातें और मुलाकातें।
वहाँ से हम सीधे होटल पहुंचे। दोनों बच्चों को उदयपुर भ्रमण के लिए भेजकर मैं और वंदना जी शक्ति फ़िल्म प्रोडक्शन के आयोजन में गए। 
लौटकर चारो होटल में इकट्ठे हुए और चल पड़े अहमदाबाद की यात्रा के लिए।

यादें जो साथ बटोरकर लाए हैं
वो आप सभी से बाँटने का मन है
ये अपनापन जिंदा है दुनिया में
तभी तक ही रिश्तों का जीवन है

प्रीति सुराना

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