Tuesday, 29 October 2019

एक दीप मेरे लिए

पैरों के महावर से
माँग में भरे सिंदूरी रंग से
काले मोतियों में गूँथे अटूट बंधन से
रेशम की डोर से
बाबुल की चुनरी से
देह से या देहातीत
मन से या मष्तिष्क से
और
आत्मा की अनन्त गहराइयों से
जुड़े हर रिश्ते को निभाती हूँ
मैं जीती हूँ रिश्तों के लिए,..!
कभी
किसी ने एक पल भी
अपनापन दिया हो तो जिंदगी भर
निभाती हूँ वो रिश्ता
चाहे कुछ रिश्ते
आखिर में एक तरफा ही क्यों न रह जाएँ।
कभी किसी रिश्ते को
खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ा भी है
तो खुद को उस मोड़ से अलग
न कभी किया न कर पाऊंगी।
मुझे टूटना गवारा है
पर रिश्तों का टूटना
मेरे टूटने से भी ज्यादा तकलीफ देह रहा है हमेशा-हमेशा,..!
आज भी
ईश्वर से यही माँगा है
न रब रूठे,
न सब रूठे,
जो अपने बने,
वो अपने रहें,
सब खुश रहें,
तो मैं खुश रहूँ,
रिश्ते जियें
तो मैं जियूँ,..!
सुनो!
तुम भी एक दीप मेरे लिए जलाओ न!
आज के खास दिन मेरे लिए दुआओं का,..!

प्रीति सुराना

2 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 30 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. लिखते रहियो
    सुंदर रचना
    रिश्तों से ही रौनक लगती है जिंदगी में।

    यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

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