मन का अवकाश
बुद्धि की मर्यादा से श्रद्धा जन्म लेती है,
शक्ति की मर्यादा से समर्पण जन्म लेता है,
इंद्रियों की मर्यादा से संयम जन्म लेता है।
श्रद्धा,समर्पण और संयम जीवन को ऊंचाई पर ले जाता है। जिसदिन बुद्धि, शक्ति और इंद्रियों पर लगाम कस ली अनर्गल प्रलाप से निवृति तय है।
ऑनलाइन इंदौर से लाइव प्रवचन परम पूज्य आचार्य विजयरत्नसुन्दर सुरि जी म. सा. का अभी चल रहा है,.. 10:19 तक सुनते हुए भी मन अपने वास्तविक जीवन में बुद्धि, सामर्थ्य और अपेक्षाओं के चक्र में भ्रमण करता हुआ अचानक उठकर खड़ा हो गया इस ज़िद के साथ कि मन को अवकाश चाहिए चिंता से और
चिंतन को दिशा चाहिए।
स्मरण, दर्शन और स्पर्शन का क्रम शाश्वत है। देव हो, प्रिय हो या लक्ष्य हो जब स्मरण होगा तभी देखने की इच्छा होगी और देखोगे तभी स्पर्श या प्राप्त करने की इच्छा बलवती होगी। इस सत्य को शब्दशः स्वीकारता हुआ मन आचार्य श्री के इस वचन को भी शब्दशः स्वीकारता है कि परमात्मा के मार्ग को चैलेंज मत करना क्योंकि अध्यात्म कहता है बुद्धि, शक्ति या शरीर से परे मन की सही दिशा और दशा श्रद्धा, समर्पण और संयम के साथ ऐसा चैलेंज नहीं करती।
सच सच और सिर्फ सच!
साधर्मिक भक्ति से शुरू की गई बात को आचार्य श्री ने जो दिशा दी और जिस परिणाम की कल्पना मन के सामने रखी उसे साकार करने के लिए मन ने अर्जी लगाई है खुद को देखने, निरखने और परखने के लिए बुद्धि, शक्ति और अपेक्षाओं से परे अवकाश की,...!
ये अवकाश देगा कौन?
ये अवकाश मिलेगा मन को बुद्धि, शक्ति और शरीर से,.. मन का यह अवकाश खत्म तब होगा जब स्वयं को देखने, निरखने और परखने के बाद श्रद्धा, समर्पण और संयम की स्वयं में उत्पति होगी।
आज 10:35 से मन अवकाश पर है, कब तक? पता नहीं,..!
प्रीति सुराना
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