Tuesday, 27 August 2019

शुक्रिया जिंदगी!

शुक्रिया जिंदगी!

मैं
अकसर
सबके बीच मौजूद होकर भी
खुद अपने भीतर
अपनी ही ग़ैरमौजूदगी की गवाह होती हूँ!

पीड़ा देता है
खुद में खुद का न होना
खुद से खुद का छला जाना,.!

पर आज
मेरी ग़ैरमौजूदगी से
कितनी जिन्दगियों पर असर होता है
ये बता कर मेरे अपनों ने दी है
जिंदगी और जिंदादिली की एक नई वज़ह!

हाँ!
मैं जीतूंगी हर कठिन से कठिन हालात से
और जीयूंगी जिंदादिली से ज़िंदगी,
रहूंगी मौजूद हमेशा अपनी मौजूदगी के साथ,..!

होकर भी न होने से अच्छा
मेरे होने की अहमियत को साबित करने के लिए
शुक्रिया मेरे अपनो!
शुक्रिया जिंदगी!

प्रीति सुराना

3 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 28 अगस्त 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह!!बहुत खूब!

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  3. बहुत अनूठा जीवन दर्शन और असहायता की पीड़ा | मार्मिक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें |

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