मेरे आँचल के चार कोने,... और मेरी मन्नतें
सुना था
मांगनी हो कोई मन्नत
तो बांध लेना चाहिए
अपने आँचल में गाँठ
और रखना चाहिए अटूट विश्वास
ये मन्नतें जरूर पूरी होंगी!
मेरे आँचल के चार कोने,...
एक में बांधी जन्मदाता
माँ-पापा के आशीर्वाद की
ताउम्र ख्वाहिश के नाम की गाँठ
और खोंच लिया कमर पर
इस निश्चय के साथ कि
जब तक आँचल में बंधा है आशीष
कमरकस कर तैयार हूँ
हर परिस्थिति का सामना करने
और जिम्मेदारियों को निभाने के लिए!
दूसरे में बांधी सृष्टि की
सलामती की आकांक्षा
और छोड़ दिया धरा के संपर्क में
इस उम्मीद के साथ
कि मेरी यह मन्नत
खुद धरती माँ संभाल लेगी
जैसे संभालती है सम्पूर्ण सृष्टि
अपने संतुलन से
अनंतानंत काल से!
तीसरे कोने में बांधी एक गाँठ
अपने बच्चों की खुशियों के नाम
और छोड़ दिया हवा में लहराता
ताकि मेरे बच्चे
मुझसे भावनाओं की डोर से
बंधे रहकर भी सीख जाएं
परिंदों की तरह
आज़ाद रहकर भी
उड़ना, गिरना और संभलना!
चौथा और आखरी कोना
जो रहता है हमेशा मेरे हाथ में
मेरे वजूद को सुरक्षित ढकता हुआ
मुझे खुद में समेटता हुआ
मुझे महसूस करवाता हुआ
कि सृष्टि में जन्मदाताओं ने मुझे जन्म दिया
मैंने नई संतति को जन्म देकर कर्तव्य निभाया
पर अब तमाम कर्तव्य निभा पाउंगी
सिर्फ तुम्हारे साथ के कारण,..!
मेरे आँचल के आखरी कोने में
बंधी है मन्नत सिर्फ तुम्हारे साथ की,
देना मुझे दुआ हमारा साथ न छूटे,
मेरी चारो मन्नतों में
माँ-पापा, सृष्टि, बच्चे और तुम्हारी
ख्वाहिश, आकांक्षा, उम्मीद और खुशी मांगी
जो कर देगी मेरा संसार पूरा
उस कोने में लाकर
जहाँ बंधी हैं गाँठ हमारे साथ की मन्नत की!
सुनो!
अब बारी तुम्हारी
माँगना तुम भी
एक मन्नत
मेरी मन्नतों के पूरे होने की
क्योंकि
मेरा जीवन समर्पित जिसे
वो हो
सिर्फ तुम,..!
प्रीति सुराना
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