सुनो!
लिखना चाहती हूँ हर विधा में खुद को
बेबहर जिंदगी है और बाबहर मुश्किलें
गीत, ग़ज़ल, कहानी, कविता
क्या लिखूं कुछ भी तय नहीं है
शब्द तो है पर लय नहीं है
कथ्य, शिल्प, उपमेय, उपमान
अलंकार, शब्दशक्ति, रस, भाव
और कथ्य भी है
पर कथानक के लिए व्यवस्थित ज़मीन नहीं है
लंबी कहानी है
पर कविता सी छोटी जिंदगानी है
आज
जब मैं लिखना चाहती हूं
शब्द-शब्द खुद को
तो समझ नहीं पा रही हूँ
खुद को कहानी सा विस्तार दूँ
या समेट लूँ खुद को
किसी गूढ़ कविता सा चंद पंक्तियों में,..!
प्रीति सुराना
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