पिघलने को अधीर थी जमी हुई मन की पीर
रुक नहीं पाए जब मेरी बेबस आँखों से नीर
तब गरजकर आवाज़ सिसकियों की छिपाई
बादलों ने बरसकर साथ मुझको बंधाया धीर!
प्रीति सुराना
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पिघलने को अधीर थी जमी हुई मन की पीर
रुक नहीं पाए जब मेरी बेबस आँखों से नीर
तब गरजकर आवाज़ सिसकियों की छिपाई
बादलों ने बरसकर साथ मुझको बंधाया धीर!
प्रीति सुराना
सुन्दर अभिव्यक्ति...👍👍👍
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