ये जीवन है,..!
तुम प्रेम में जीये
मैंने प्रेम को जीया
हाँ!
अब भी
बाकी तो है
देह में सांसें
हृदय में स्पंदन
बस नहीं रहा
कुछ शेष
तो वो है
तुममे प्रेम
मुझमें जीवन,
फिर भी
सब कुछ वही है
सब कुछ सही है
यही नियति सदा
समर्पण की रही है!
प्रीति सुराना
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