सुनो!
मैंने
आज
लिख ही डाले
सारे अरमान/सपने,
ख्वाहिशें
चाहतें
इच्छाएं
तमन्नाएं
आरजू
जुस्तजू
सब कुछ
सिर्फ तुम्हारे कहने पर,..!
पर
मेरे लिखने की सार्थकता तब है
जब
पढ़ो
समझो
मानो
और पूरा करने में सहायक बनो,..!
वरना
ठोकरें
जिल्लत
आरोप-प्रत्यारोप
नफ़रत (प्रेम का बदला स्वरूप ही सही)
गुस्सा, ताने, अपशब्द
ये तो गैरों के पास भी है,..!
अपनों में
और अपनों जैसे में
गैरों में
और तुममें
आखिर अब भी
कुछ फर्क तो है ही,..
है ना!!!
प्रीति सुराना
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