नगण्य ही सही किंतु हूँ मैं
बूंदों से बना पर सिंधु हूँ मैं!
न मेरा कोई धर्म, न मजहब
न सिक्ख, ईसाई, न हिन्दू हूँ मैं!
किस काल से हूँ ये भी न जानूँ
न कबीर, तुलसी न भारतेंदु हूँ मैं!
कर्म करके स्वभाग्य गढ़ता
बस स्वेद श्रम जल बिंदु हूँ मैं!
प्रीति सुराना
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