नहीं,..!
सूरज में रोशनी है, ऊर्जा है, ताप है, तेज है,
सिर्फ आग कहने से भी सूरज ये गुण छोड़ेगा तो नहीं।
चाँद में शीतलता है, सौम्यता है, सौंदर्य है, उम्मीद है,
सिर्फ दाग कहने से भी चाँद बदलेगा तो नहीं।
सृष्टि में सुख है, शांति है, अच्छाई है, भलाई है,
सिर्फ बुरा कहने से भी सृष्टि का कुछ बिगड़ेगा तो नहीं।
क्यों सिर्फ और सिर्फ बुराइयों की चर्चा करना,
जो भला है वो, *ऐसा-वैसा* कहने से बुरा होगा तो नहीं।
अपना चश्मा बदल कर देखना सिर्फ एक बार,
रंग बहुत से खूबसूरत भी हैं सिर्फ काला ही तो नहीं।
सुख, यादें, अपनापन, प्रेम, विश्वास बहुत कुछ है बाँटने को,
दर्द, दगा, दोष देकर दुनिया का चलन रुकेगा तो नहीं।
बदलना है तो नज़रिया ही बदलकर देखो दुनिया को एक बार,
कुछ तो होगा ऐसा भी जिसे देखकर सिर झुकेगा तो नहीं।
सब कुछ अनवरत है प्रकृति में, कोई भी अजर अमर नहीं है,
जो आया है उसे जाना है, कुछ भी जहान में रुकेगा तो नहीं।
प्रीति सुराना
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नमन आज़ादी के दीवाने वीर सावरकर को : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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