कोई हल न मेरे पास है
और अब न कोई आस है
खामोशियाँ ही ओढ़ लूँ
कि ये मन बड़ा उदास है
मुश्किलों का दौर है
तबाहियाँ चहुँ ओर है
बिखराव ये सिमटे जहाँ
ऐसा न कोई छोर है
उम्मीदें सारी खत्म हुई
साथी न कोई खास है
खामोशियाँ ही ओढ़ लूँ
कि ये मन बड़ा उदास है
मैं ढूंढती ही रह गई
कोई रहगुजर मिली नहीं
सफर को जो अंजाम दे
वो डगर मिली नहीं
अंधेरे बढ़ते ही चले गए
आगे न कोई उजास है
खामोशियाँ ही ओढ़ लूँ
कि ये मन बड़ा उदास है
हाथ छूटे साथ छूटे
फासले बढ़ते गए
मुँह मोड़कर अपने मेरे
चलते गए चलते गए
कुछ भी तो अब मुमकिन नहीं
हल भी तो समय का दास है
खामोशियाँ ही ओढ़ लूँ
कि ये मन बड़ा उदास है
कोई हल न मेरे पास है
और अब न कोई आस है
प्रीति सुराना
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