भीग रहा है अन्तस मेरा
भीग रहा है अन्तस मेरा, जाने कैसा सावन है,
आँखें भीगी ही रहती है, जीवन में रूखापन है,..!
बातें आती है अधरों तक
आकर फिर रुक जाती है
मेरा मन जो कहना चाहे
आँखे वो झुठलाती है
आवाज़ निकलने को आतुर
कंठ में पर रुंधापन है
भीग रहा है अन्तस मेरा, जाने कैसा सावन है,
आँखें भीगी ही रहती है, जीवन में रूखापन है,....!
करने को सब कुछ करती हूँ
पर जाने क्या करती हूँ
सब को लगता है जीती हूँ
लेकिन पल पल मरती हूँ
ऐसा आखिर क्यों होता है
इसका कुछ तो कारण है
भीग रहा है अन्तस मेरा, जाने कैसा सावन है,
आँखें भीगी ही रहती है, जीवन में रूखापन है,...!
मन ही मन मैं जान रही हूँ
गलत सही हालातों को
नामुमकिन समझाना है
अपने मन की बातों को
खुद समझे जो करते दावा
मुझसे ही अपनापन है
भीग रहा है अन्तस मेरा, जाने कैसा सावन है,
आँखें भीगी ही रहती है, जीवन में रूखापन है,...!
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment