अन्तरा शब्दशक्ति
हिन्दी में किये गए हर सृजन का स्वागत करता है,
क्या हुआ अगर आप नए है
पत्थर भी मूरत बनते हुए धीरे-धीरे ही निखरता है,
आलोचना से डरें नहीं
उसे स्वीकार करके सीखिए नित कुछ न कुछ नया,
वो कभी नहीं संवरता
जो अपने निंदकों से भागता, चिढ़ता या डरता है!
डॉ. प्रीति सुराना
सत्य कहा आदरणीया
ReplyDeleteबहुत खूब