Tuesday, 19 February 2019

धरती का बलिदान


रेलगाड़ी और पटरी के बीच संवाद चल रहा था।
रेलगाड़ी ने कहा थक जाती हूँ पर लाखों लोगों को मंजिल तक पहुँचाती हूँ। पटरी ने कहा माना तुम दौड़ती हो पर तुम जैसी अनेक गाड़ियों का रास्ता बनकर मैं सबका भार वहन करती हूँ और जाने कितने हिस्सो में बंटी और किस किस को गंतव्य तक पहुँचाती हूँ।
बहुत देर दोनों का महिमा मंडन चलता रहा। दोनों ने जो-जो बलिदान दिये एक दूसरे को बताते रहे। आखिर धरती से रहा नहीं गया तो बोल पड़ी। लौहपथ और लौहपथगामिनी तुम मानव निर्मित हो, मानव द्वारा संचालित हो और अपने निर्माता और व्यय वाहकों के साथ दोनों ही अपने अस्तित्व व दायित्व का बखूबी निर्वाह करती हो। पर एक दूसरे के बिना तुम दोनों ही अर्थहीन हो। अपनी पूरकता का मान समझो बलिदान तो हर रिश्ते की नींव है।
अचानक दोनों एक साथ बोल पड़ी क्षमा करें माता आप का बलिदान और समर्पण तो सर्वोपरि है। आप जितना सहती हैं उसके सामने पूरी सृष्टि में कोई भी सहनशील हो ही नहीं सकता। आभार आपका हमें कर्तव्यबोध करवाने और बलिदान का वास्तविक अर्थ बताने के लिए। हम जो कर रहे है दरअसल वो बलिदान नहीं हमारा कर्तव्य है क्योंकि हम इसी दायित्व के निर्वाह के लिए बनाए गए हैं।
नतमस्तक हो दोनों कर्तव्यपथ पर बढ़ चली और अचला धरा अपने ऊपर जो रहे तमाम कर्मो को निर्विकार निहारती रही।

प्रीति सुराना

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