Thursday, 24 January 2019

वृक्ष बनो, वृक्ष लगाओ

"वृक्ष बनो, वृक्ष लगाओ"

एक पल्वित संवर्धित वृक्ष
बीजारोपण, अंकुरण, पल्लवन, संवर्धन,..
पतझड़, सावन, बसंत, बहार,...
इन सभी प्रक्रियाओं
और
परिस्थितियों से गुजरते हुए
जड़ों से मजबूत
और
स्तंभों से सख़्त होता चला जाता है,...

शाखाओं को भ्रम होता है
फूलों और फलों को वो ही संभाले है
जबकि तोड़ लिए जाते है
यथासमय फल
झर जाते हैं नियतिनुसार फूल
टूट जाती है
या तोड़ दी जाती है कई शाखाएँ
आवश्यकतानुसार,...

फिर भी सख़्त होती जड़ें और स्तंभों में
संवेदनाएँ संचरित रहती हैं
और
जब तक संवेदनाएँ
पेड़ के अस्तित्व में प्रवाहमान
रक्त सी संचरित होती हैं
समयानुसार
कभी नई शाखें
कभी नए पत्ते, नए फूल,
कभी कभार ही सहीं कुछ फलों की
उम्मीद की कोपलें फूटती रहती हैं,...

हाँ!
नियति ने वृक्ष को बनाया है
एक आदर्श जीवन के लिये
कि
टूटकर या तोड़े जाने पर
सूखकर या रिक्त हो जाने पर
जीवन से परे
मरने या उखाड़े जाने पर भी
खुद को ऐसा बनाया जाये
कि अंत में भी
एक-एक अंश
किसी न किसी उपयोग में आ सके
तभी होगा सार्थक जीवन!!

सार यही कि

ऐसे बनो कि
जीवनधरा पर विशाल वृक्ष लगो
ऐसा करो कि
विशाल धरा पर वृक्ष लगाओ,....!

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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