Wednesday 3 October 2018

मैं बहुत पीड़ा में हूँ,..

मैं बहुत पीड़ा में हूँ, कहीं से कोई खुशी लाओ।
ये न पूछो क्या हुआ, बस घावों को सहलाओ।।

मेरे सपनों का घरौंदा
हाथों से है मेरे छूटा,
अब पड़ा है बिखरा-बिखरा
यहाँ-वहाँ सब टूटा-फूटा,
उठा लो टुकड़ा जो भी चाहो
चुभन से न दहलाओ,..
मैं बहुत पीड़ा में हूँ, कहीं से कोई खुशी लाओ।
ये न पूछो क्या हुआ, बस घावों को सहलाओ।।

भीगा-भीगा मन का कोना
रोकूं कैसे आँखों का रोना,
थम गई है दुनिया मेरी
न करो थोड़ी भी देरी,
थाम कर उँगली मेरी
कुछ दूर टहलाओ,..
मैं बहुत पीड़ा में हूँ, कहीं से कोई खुशी लाओ।
ये न पूछो क्या हुआ, बस घावों को सहलाओ।।

खो चुकी हूँ अपना सबकुछ
हिम्मत नहीं फिर भी है हारी,
कोशिशें करती रही हूँ
कोशिश मेरी अब भी है जारी,
हो सके तो साथ चलकर
कुछ दिलासा ही दिलाओ,...
मैं बहुत पीड़ा में हूँ, कहीं से कोई खुशी लाओ।
ये न पूछो क्या हुआ, बस घावों को सहलाओ।।

हौसले की बातें करो कुछ
अंतस में कोई आस जागे,
कहीं न मुझमें घर बना ले
कुछ करो कि डर दूर भागे,
करके बातें सुनहरे कल की
मेरे मन को बहलाओ,....
मैं बहुत पीड़ा में हूँ, कहीं से कोई खुशी लाओ।
ये न पूछो क्या हुआ, बस घावों को सहलाओ।।

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/10/blog-post_3.html

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  2. जो पीड़ा, पीड़ा में भी ख़ुशी को याद रख सकती है..वह अनमोल है..सुंदर भावपूर्ण..

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