Tuesday 2 October 2018

मासूम मुहब्बत

हाँ!
मेरी मुहब्बत बच्चों सी मासूम है
ज़िद, गुस्सा, लड़ाई, अबोलापन,
सब कुछ शामिल है
पल पल में,..
पर सुनो!
एक बार रोते-रोते सो जाऊँ
तो
फिर अगली सुबह
माँ की गोद की तरह,
सिर्फ
तुम्हारा आलिंगन याद रहता है,...

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. जोरदार लेखन
    आपकी हर कविता में मोहब्बत छलकती है वो भी बेशुमार

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