Tuesday, 4 September 2018

दौर

परेशानियों का एक अजब सा ही दौर है
चाहती कुछ और हूँ होता कुछ और है
तन-मन-धन-जन व्यथित चहुँ ओर से हूँ
मिठाई की कल्पना और कड़वाहट का कौर है,..
प्रीति सुराना

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