Thursday 21 June 2018

*वर्तमान जीवन शैली में योग का महत्व*

*वर्तमान जीवन शैली में योग का महत्व*

*साधन और संसाधनों से जुड़े अनगिनत रोग।*
*तन मन धन संतुलित करे वो एक मात्र है योग।*
*भारत की संस्कृति और पावन यह परम्परा,*
*समझो, अपनाओ और जियो जीवन सुखद सुयोग।*

*योग का शाब्दिक अर्थ है जुड़ना।*
*योग के प्रमुख प्रकार* 1.कर्मयोग, 2.धर्मयोग, 3.हठयोग और
4.ज्ञानयोग ।
          योग को सविस्तार समझने के प्रयास का परिणाम यही है कि 'योग' धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे है। योग एक प्रायोगिक विज्ञान है। योग जीवन जीने की कला है। योग एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है। योग मानसिक संतुलन का सुदृढ़ मार्ग है।
       दर्शन शास्त्रों में, मंत्रोच्चारण में, चिकित्सा पद्धतियों में, खेल में, संगीत में, सामाजिक सरोकारों में यत्र तत्र सर्वत्र योग का संयोग मिल ही जाता है।
         प्राचीन काल से ही योग का प्रयोग आध्यात्मिक क्रियाओं एवं विकास के लिए किया जाता रहा है। योग का उद्देश्य आत्मा का परमात्मा के मिलन द्वारा समाधि प्राप्त करना है। इसी अर्थ को जानकर कर्इ साधक योगसाधना द्वारा मोक्ष, मुक्ति के मार्ग को प्राप्त करते है। योग के अन्तर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि को साधक चरणबद्ध तरीके से पार करता हुआ कैवल्य को प्राप्त कर सकता है।
        दिन प्रतिदिन योग की बढ़ती मांग इस बात को प्रमाणित करती है कि योग वर्तमान जीवन में आवश्यकता बन चुका है। जिसका कोर्इ दूसरा पर्याय नहीं हैं। योग की लोकप्रियता और महत्व के विषय में हजारो वर्ष पूर्व ही योगशिखोपनिषद् में कहा गया है- 
*योगात्परतंरपुण्यं यागात्परतरं शित्रम्।*
*योगात्परपरंशक्तिं योगात्परतरं न हि।।*
         अर्थात् योग के समान कोर्इ पुण्य नहीं, योग के समान कोर्इ कल्याणकारी नही, योग के समान कोर्इ शक्ति नही और योग से बढ़कर कुछ भी नही है। वास्तव में योग ही जीवन का सबसे बड़ा आश्रम है।
           आज के सामाजिक ढांचे में योग की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि  वर्तमान जीवन शैली में ध्यान, समाधि, विचार और सोच को संतुलित करना एक बहुत कठिन लक्ष्य है क्योंकि आज का जीवन भागदौड़ और तकनीकियों से इतना अधिक प्रभावित है कि योग दर्शन, विज्ञान और कला की बजाय केवल प्रदर्शन की विषय वस्तु बनकर रह गया है। 
        ढेर सारे संदेश, चित्र और आलेखों से भरा होता है *21 जून, विश्व योग दिवस* लेकिन दुखद कि ये अधिकतर सोशल मीडिया में प्रदर्शन हेतु ही है। दिनचर्या को इतना अव्यस्थित करने वाला सोशल मीडिया ही सबसे सशक्त प्रचार का माध्यम भी है ये भी एक विरोधाभास युक्त संयोग ही है।
       जबकि प्रदर्शन की जगह वास्तविकता के साथ योग को अपनाया जाए तो तन और मन के संतुलन से अनेकानेक व्याधियों से मुक्त हुआ जा सकता है और एक अनुशासित, स्वस्थ और संतुलित जीवन समाज व्याप्त हो रही अधिकतर विकृतियों के उपचार का माध्यम बन कर एक साथ तन, मन, धन और जन के लिए कल्याणकारी सुयोग बन सकता है।
*सार रूप में कहना चाहूँ तो*

योग यानि जुड़ना
योग
मन से जुड़े तो मनोयोग
अच्छाई से जुड़े तो सुयोग
विरह से जुड़े तो वियोग
आरोपों से जुड़े तो अभियोग
साथ से जुड़े तो सहयोग
हठ से जुड़े तो हठयोग
जीवन से जुड़े तो प्रयोग
और
प्रारब्ध से जुड़े तो सुखद संयोग
ये सुख दिनचर्या से जुड़ा रहे
ताकि रहे हमारा जीवन
सफल, सहज और निरोग,.....

*डॉ. प्रीति सुराना*

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