Saturday 30 June 2018

आ गया

आप से नज़रे चुराना आ गया
आपसे बातें छुपाना आ गया

पीर को मन की दबाना था कठिन
नम नयन से मुसकुराना आ गया

रोज ही सहते सितम सबके यहाँ
और फिर सबकुछ भुलाना आ गया

सुबह कैसी थी हमें मालूम क्या
रात सा जीवन बिताना आ गया

प्रीत की राहें भला कब थी सरल
मुश्किलों के पार जाना आ गया

डॉ. प्रीति सुराना

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