सुनो!
जानती हूँ
नहीं होगा तुम्हे असर
भेड़िया आया की कहानी की तरह
यदि मैं कह दूं कि मुझे कुछ हो जाएगा
आज नासाज़ सी है तबीयत मेरी,..
और सच कहूँ
मैं चाहती भी यही हूँ
न हो तुम्हे कोई असर,...
हाँ!
तुम्हारी तकलीफ का अंदाज़ा
तुमसे कहीं ज्यादा है मुझे,..
क्योंकि
इन दिनों हो रहे
हादसों ने सिखाया
हम अपनों को खोकर
जीते हैं
डर-डर कर,...
क्योंकि
हादसों का असर
जाने वाले को नहीं होता
बल्कि होता सिर्फ
पीछे छूट रहे अपनों पर,...
मेरा अपनी तबीयत को लेकर
तुमसे बार-बार कहना
तैयार रखेगा मानसिक तौर पर
तुम्हें मेरे बाद संभलने के लिए,..
सच
मैं नहीं चाहती गुजर जाना
एक हादसे की तरह
क्योंकि नहीं चाहती
तुम्हें छोड़ना
डर और सदमे के साथ अकेला,
चाहती हूँ सिर्फ इतना
कि समझो जाना तय होता है,..
बस
अचानक जाना
अधूरी तैयारी के कारण
देता है सफर में
तकलीफें
पहले से पता हो
तो सफर होता है आसान
जाने वाले का भी
और छूट रहे अपनों का भी,...
मैं
इन दिनों
रोज सड़कों पर हो रहे
हादसों में से नहीं हूं
तुम समझना मुझे
मेरी बातों को
और
संभालना
खुद को मेरे बाद,..
प्रीति सुराना
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