Wednesday 4 April 2018

संस्कारों की छत

संस्कारों की छत

"सोहन का बेटा रोहन उससे भी दो कदम आगे निकला।"
सच कहते हो भैय्या चोरी के साथ सीना जोरी भी, सच कहो तो रोहन "करेला वो भी नीम चढ़ा।" पूरे मोहल्ले में आतंक फैला रखा है।
लाला जी और भानु भाई शाम को अपने पोते-पोतियों को साथ लेकर कालोनी में टहलते हुए बतिया रहे थे।
तभी रामचरण जी अपने पोते की उंगली थामे सामने से आ गए। लाला जी ने चुटकी लेते हुए कहा रामजी का काम अच्छा है "खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग न बदले इसलिए हम सब अपना-अपना ख़रबूजा साथ लिए घूमते हैं।" तीनों मित्र ठहाके मारकर हँस पड़े।
तीनों बच्चे पास ही खेलने लगे और शांत होते ही रामचरण जी बोले "बात हँसी ठिठोली तक सही है, पर सच बात तो ये है कि पालन-पोषण अगर प्रेम की ज़मीन पर संस्कारों की खाद और अच्छे निरीक्षण में हो तो फसल अच्छी ही होती है। हम तीनों किस्मत वाले हैं कि हमारी संतानों ने वृद्धाश्रम के ज़माने में हमें अपनी छत से अलग नहीं किया और हम हमारी अगली पीढ़ी को संस्कारों की छत दे पाए। वरना माता-पिता को अलग घर में रखकर सोहन ने भले ही खुद को स्वतंत्र समझा हो पर अपने बच्चे को संस्कारविहीन आधुनिकता का गुलाम बना दिया।"
लाला जी और भानु भाई ने भी स्वीकृति जताई। तभी जाने का समय हो गया ये कहते हुए बच्चे निकट लौट आए। बच्चों सहित सभी ने परस्पर अभिवादन किया और लौट चले अपने आशियानों की ओर,...।

प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment