पाश्चात्य सभ्यता का दीवाना रोहन जिसे उसके चाटुकार मित्र लाटसाहब कहा करते , धीरे-धीरे कब नशे और सट्टे का आदि हो गया पता ही न चला।
गली में बहुत शोर था।
रीना सालों बाद लखनऊ शहर में आई थी। बचपन बीता था उसका ननिहाल यानि लखनऊ की गलियों में।
रोहन से बचपन से दिल के तार जोड़ रखे थे। अब जब उसकी शादी की बात चल रही थी वो एक बार उसके मन की बात जानने की इच्छा लिए लखनऊ चली आई। ननिहाल में सबको चौंका देने की मंशा से किसी को खबर नहीं की। रीना का ननिहाल और रोहन का घर अगल-बगल ही था।
गली में शोरगुल देख रीना थोड़ी हैरान हुई। रिक्शे से उतरी तो कुछ लोगों से पूछा यहाँ क्या हुआ है??
लोगों ने बताया कि ठाकुर साहब और उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली और रोहन नशे में धुत्त सड़क के किनारे पड़ा मिला।
अन्तिमसंस्कार के लिए सब रोहन के होश में आने का इंतज़ार कर रहे हैं। अन्तिम संस्कार के बाद हवेली भी नीलाम होनी है क्योंकि ठाकुर साहब इकलौते लाडले की फरमाइशें पूरी करते करते सब कुछ गवां बैठे और कर्ज न चुका पाने की शर्मिंदगी में जान दे दी।
रोहन के होश में आते ही फिर उसके होश उड़ गए। जिसे जमीन पर चलने की आदत न थी ,बुरी आदतों ने जीते जी उसके अस्तित्व को कई गज नीचे दफ़न कर दिया।
रीना स्तब्ध थी बचपन के सपने चूर-चूर हो गए। समझ ही नहीं आ रहा था कि रोहन से सहानुभूति रखे या लाटसाहब से नफरत और इसी कशमकश में जाने कब उसी रिक्शे में बैठकर चुपचाप लौट गई।
जाते हुए रिक्शे पर नज़र पड़ी पर अब रोकने का अधिकार खो चुके थे *लाटसाहब*।
प्रीति सुराना
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 13/03/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
Deleteलाटसाहब ....सच में अत्यधिक ममत्व और सारी फरमाईश पूरी करने पर आजकल के बच्चे लाटसाहब ही बनते जा रहे हैं...ऐसे में ऐसा तो होना ही है
ReplyDeleteबहुत लाजवाब.... सच का आइना दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति...
धन्यवाद
Deleteबहुत मर्मस्पर्शी रचना और संदेश परक भी |
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteहाय जवानी तेरी ये कैसी नादानी है
ReplyDeleteहर तीसरे घर की यही कहानी है ।।