प्यार इतना जरूरी क्यूं है,..
उधेड़बुन में
लगा है आज
मेरा मन
कभी बुनती हूँ
सपने-अपने,
रिश्ते-नाते,
कभी उधेड़ती हूँ
शिकवे-शिकायतें
बहाने-उलाहने,
देना चाहती हूं
जीवन को
मनचाहा आकार
जीना चाहती हूं
कुछ पल
सिर्फ अपने लिए
पर न जाने क्यूं
हर बार उन पलों में
तुम आ ही जाते हो,..
बेसबब उलझते हो
बीत जाता है सारा वक्त
सिर्फ तुम्हें सुलझाने में
हर बार सोचती हूँ
क्यों लपेटती हूँ
उधेड़े हुए धागों को
जिसके सिरों पर
बंध गई है
कभी न खुलने वाली गांठे
पर कुछ प्यार भी तो
अटक कर रह गया है
उन्हीं गांठों में मोतियों की तरह
यूँ तो जी सकती हूँ अकेले ही
सक्षमीकरण के युग में
फिर किसी पर इतनी निर्भरता क्यों?
केवल तैयार प्रतिफल का महत्व है
बुनावट की मेहनत मायने नहीं रखती
कभी भी, कहीं भी, किसी के लिए भी,..
मैं सक्षम भी हूँ पूरी तरह
खुद की परवरिश औरके लिए
फिर किसी का इंतज़ार किसलिए?
बस इसी उधेड़बुन में
लगा है आज मेरा मन,...
प्यार इतना जरूरी क्यूं है ,..
जीने के लिए???
प्रीति सुराना
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