मकर सक्रांति का दिन था। मित्रमंडली पतंग उड़ाने का आंनद उठा रही थी। पतंग उड़ती ही जा रही थी। सोना उसकी ऊंचाइयों को देखकर डर रही थी। जबकि माँजा बहुत पैना और मजबूत था। हर दूसरे पल कोई न कोई पतंग काट ही लेता। गिरती पतंगे जाने क्यों सोना के मन के डर को और अधिक बढ़ाती जा रही थी।
तभी अचानक एक और ऊंची उड़ती पतंग का माँजा मोहित के हाथ की पतंग के माँजे से न टकरा कर सीधे पतंग को चीर गया। पतंग कटी नहीं, पर फटी पतंग के साथ माँजा भी नहीं उड़ा,... देखते ही देखते फटी हुई पतंग जमीन पर और ऊंचाई तक पहुंचा हुआ पैना और मजबूत माँजा अपनी ही तरह की कंटीली झाड़ियों में उलझ गया और चकरी भी हाथ से गिर गई।
मोहित तो इसे सिर्फ खेल समझ कर हँसता हुआ पतंगबाज़ी छोड़कर दोस्तों से बतियाने में व्यस्त हो गया पर सोना???
सोना सहमी सी न जाने कहाँ खो गई???
फटी पतंग, माँजा, चकरी, झाड़ियां,...
वो, मोहित, जिंदगी, पीड़ा,....
आँसू ही आँसू, हृदय बींधती पीड़ा
क्या कोई समझ पाएगा
सोना का डर
सोना की पीड़ा???
शायद कोई नहीं😭
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment