कोई भी स्वर नहीं सुहाता
पड़ जाये जो इन कानों में,
सुर-ताल नहीं सध पाये हैं
जीवन-मृत्यु के गानों में,
जितने पल जिये है उसमें
अनुभव कड़वे ही ज्यादा हैं,
ये मन उलझा-उलझा सा है
सुख-दुख के ताने-बानों में।
प्रीति सुराना
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कोई भी स्वर नहीं सुहाता
पड़ जाये जो इन कानों में,
सुर-ताल नहीं सध पाये हैं
जीवन-मृत्यु के गानों में,
जितने पल जिये है उसमें
अनुभव कड़वे ही ज्यादा हैं,
ये मन उलझा-उलझा सा है
सुख-दुख के ताने-बानों में।
प्रीति सुराना
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