*मेरा मन*
चहुँ ओर
ईर्ष्या-द्वेष
छल-कपट
झूठ-फरेब
संदेह-कलह
दंभ-आक्रोश
आरोप-प्रत्यारोप
प्रतिद्वंदिता-प्रतिस्पर्धा
इन सब के बीच
कतरा-कतरा
विश्वास-अपनापन
कर्तव्यपरायणता-समर्पण
और
प्रेम तलाशता
*मेरा मन*
प्रीति सुराना
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*मेरा मन*
चहुँ ओर
ईर्ष्या-द्वेष
छल-कपट
झूठ-फरेब
संदेह-कलह
दंभ-आक्रोश
आरोप-प्रत्यारोप
प्रतिद्वंदिता-प्रतिस्पर्धा
इन सब के बीच
कतरा-कतरा
विश्वास-अपनापन
कर्तव्यपरायणता-समर्पण
और
प्रेम तलाशता
*मेरा मन*
प्रीति सुराना
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी२०१८ के ९०३ वें अंक के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
विकृतियों से भरे यथार्थ के धरातल पर प्रेम की तलाश सचमुच एक अबूझ पहेली जैसी है।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।
लाज़वाब
ReplyDeleteवाह!!सुंंदर!
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