Wednesday, 3 January 2018

प्रेम तलाशता *मेरा मन*

*मेरा मन*

चहुँ ओर

ईर्ष्या-द्वेष
छल-कपट
झूठ-फरेब
संदेह-कलह
दंभ-आक्रोश
आरोप-प्रत्यारोप
प्रतिद्वंदिता-प्रतिस्पर्धा

इन सब के बीच
कतरा-कतरा
विश्वास-अपनापन
कर्तव्यपरायणता-समर्पण
और
प्रेम तलाशता

*मेरा मन*

प्रीति सुराना

4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ जनवरी२०१८ के ९०३ वें अंक के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. विकृतियों से भरे यथार्थ के धरातल पर प्रेम की तलाश सचमुच एक अबूझ पहेली जैसी है।
    बधाई एवं शुभकामनाएं। लिखते रहिए।

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