अनचाहा मौन
यादों का लिहाफ़ ओढ़े
अकेले बैठे
किसी कोने में,
जब भी चाहा
खुद को महसूस करना
सन्नाटे गूंजते हैं,
सरसराती हवाएँ सुखा जाती है
पलकों की कोर,
पर चुभती है पलकें देर तक,
छटपटाता है मन
कहने को बहुत कुछ
पर सुनेगा कौन?
तन्हाई बहुत तड़पाती है
डराता है
अनचाहा मौन,...
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर।
ReplyDelete