Monday 18 December 2017

वजह

हाँ!

पोंछने लगी हूँ
चुपके से आजकल
पलकों की कोर पर
छलक आए आँसुओं को,..

क्योंकि
नहीं चाहती
मेरी खुशियों से आई नमी भी
आहत कर जाए तुम्हारे मन को,

समझने लगी हूँ अब मैं
आँसू कैसे भी हों
मेरी आँखों में
तुम सह नहीं पाते,..

वादा नहीं आएंगे आँसू
जीने के लिए
किसी और *वजह* की
जरूरत नहीं अब मुझे,..

हाथों में हो हाथ तुम्हारा बहुत है,
जीने के लिए साथ तुम्हारा बहुत है,..

प्रीति सुराना

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