अनुकृति
प्रेम, समर्पण, लगन,
इन अमूल्य भावों में भी तलाश लेते हैं
स्वार्थ, साजिश, सनक,..
बहुत कोशिशों के बाद भी
नहीं उतर पाता कोई खरा
सबके मापदंडों पर,..
कोई ऐसा साँचा बना ही नहीं
जो सबको खुश रखने वाला
उत्पाद बना सका हो अब तक,..
न ही बना ऐसा कोई उपकरण
जो सबकी अपेक्षाएं और जरूरतें
एक साथ पूरी कर सके,...
सृष्टि के रचयिता
कुछ देर ही सही
दे दो अपना हुनर मुझे,..
गढ़ना चाहती हूं
एक अनुकृति अपनी
जो हूबहू मुझ सी हो,..
पर उसमें न हों वो सारे अवगुण
जो अकसर मुझमें दिखते हैं
मेरे ही अपनों को,..
पर मुझे देना मार्गदर्शन
सबसे कुशल रचनाकार होकर
जो तुम न कर सके वो मैं करूँ तो कैसे?
अकसर
खुद जिम्मेदारी लिए बिना
सामने खड़े होकर
गलतियां गिनाने वाले लोग
खोट तो तुममें भी
निकाल लेते हैं,...
"कवि शैलेन्द्र की सच्ची पंक्तियाँ:-
तू भी तो तड़पा होगा मन को बना कर
आंसूं भी छलके होंगे पलकों से तेरी
बोल क्या सूझी तुझको काहे को प्रीत जगाई
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
तूने, काहे को दुनिया बनाई,..."
अब जब बनाई ही है तो मुझे सिखा दो
सिर्फ एक बार
बना सकूं अपनी निर्विकार अनुकृति,...
मेरी एक मात्र याचना सृष्टि के रचयिता तुमसे
इस यक्ष प्रश्न के साथ
कर सकोगे पूरी मेरी ये याचना ,...??
प्रीति सुराना
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ख़ूब !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete