फिर अकेली खड़ी हूँ
एक ऐसे मोड़ पर
जहाँ रास्ते बहुत हैं
साथी कोई नहीं,..
पलकें बोझिल सी हैं
कितने सपनें लिए
घने अंधेरों का डर
रात सोई नहीं,..
घुट रहा मेरा मन
ये महसूस होता है
कहना चाहूँ मगर
बात कोई नहीं,...
उबल रहे हैं दर्द
पिघलना चाहते हैं
आँसू पी रही हूँ पर
आज रोई नही,..
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
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